साहब इतना सन्नाटा क्यों ? ना कोई अवकाश ना कोई दरख्वास्त
बॉर्डर न्यूज़ लाइव, महराजगंज
महराजगंज जिले के उप संभागीय परिवहन कार्यालय (एआरटीओ) की कार्यशैली इन दिनों आम जनता के लिए परेशानी का कारण बनी हुई है। बुधवार के दिन जब सैकड़ों वाहन मालिक ड्राइविंग लाइसेंस, गाड़ियों के पंजीकरण, परमिट नवीनीकरण एवं अन्य जरूरी कार्यों के लिए कार्यालय पहुंचे, तो उन्हें सामने दिखा सिर्फ सन्नाटा और ताले से बंद दरवाजे। सरकारी दफ्तरों में पहले से ही विलंब और लापरवाही की शिकायतें आम हैं, लेकिन आरटीओ कार्यालय की यह स्थिति स्थिति को और भी दयनीय बना रही है।
चौंकाने वाली बात यह है कि यह कार्यालय महराजगंज के जिलाधिकारी कार्यालय से महज कुछ ही दूरी पर स्थित है, फिर भी पूरे दिन यहां कोई भी कर्मचारी या अधिकारी कार्यस्थल पर मौजूद नहीं रहा। न कोई सूचना पट पर छुट्टी का उल्लेख था, न ही किसी दरख्वास्त की प्रति। आम जन का सवाल यही है— “अगर सरकारी कार्यालय यूं ही मनमानी से बंद रहेंगे, तो जनता अपनी समस्याएं लेकर कहां जाए?”
जिस कार्यालय का दायित्व है कि वह जिले के भीतर हजारों वाहन चालकों और वाहन स्वामियों को आवश्यक सेवाएं मुहैया कराए, वहां इस प्रकार का रवैया विभागीय उदासीनता और जवाबदेही की पूर्णतः कमी को दर्शाता है। बुधवार को आरटीओ कार्यालय के कक्ष संख्या 4 और 6 में ताले लटके रहे। लोग आते रहे, खटखटाते रहे, लेकिन दरवाजे नहीं खुले। दूर-दराज से आए ग्रामीण नागरिकों को सबसे अधिक कठिनाई का सामना करना पड़ा, जो सुबह से लेकर दोपहर तक इंतजार करते रहे।
कार्यालय के बाहर खड़े एक बुजुर्ग वाहन स्वामी ने गुस्से में कहा, “भैया, हम तो सुबह 9 बजे आ गए थे सोचकर कि लाइसेंस का काम जल्दी हो जाएगा, लेकिन यहां तो कोई दिख ही नहीं रहा। पूछो तो कोई जवाब नहीं, अंदर ताले लटके हैं। यह कैसा दफ्तर है?” ऐसे ही एक अन्य युवक, जो ट्रांसपोर्ट व्यवसाय से जुड़ा है, ने बताया कि उनकी गाड़ी का फिटनेस सर्टिफिकेट एक दिन बाद समाप्त हो रहा है, और उन्हें इसकी तत्काल जरूरत है, लेकिन अधिकारियों के गैरहाजिर रहने के कारण उनकी परेशानी बढ़ गई है।
आरटीओ कार्यालय से जुड़े कई एजेंटों ने भी बताया कि यह स्थिति पहली बार नहीं है। कार्यालय में कर्मचारियों की अनियमित उपस्थिति, लापरवाह व्यवहार और बिना पूर्व सूचना के अनुपस्थिति अब आम बात हो गई है। जब कोई शिकायत करता है, तो उसे यह कहकर टाल दिया जाता है कि “अधिकारी मीटिंग में हैं” या “सिस्टम डाउन है।”
यह हाल तब है जब राज्य सरकार डिजिटल इंडिया और ट्रांसपेरेंसी की बात करती है। उत्तर प्रदेश सरकार ने परिवहन सेवाओं को ऑनलाइन करने के लिए अनेक घोषणाएं की हैं, लेकिन ज़मीनी हकीकत में लोगों को आज भी दफ्तर के चक्कर काटने पड़ रहे हैं। हर दिन यहां दर्जनों लोग लाइन में खड़े मिलते हैं—किसी को ड्राइविंग टेस्ट देना है, किसी को नया लाइसेंस बनवाना है, तो कोई अपने वाहन का रजिस्ट्रेशन कराने आया है। लेकिन अधिकारी अगर मनमाने ढंग से अनुपस्थित रहेंगे, तो इन सेवाओं का लाभ कैसे मिलेगा?
ऐसे में यह सवाल उठता है कि इस कार्यालय में न तो कोई कार्यदिवस की सूची स्पष्ट रूप से प्रदर्शित की गई है, न ही कोई हेल्प डेस्क ऐसा है जहां से लोगों को जानकारी मिल सके। सूचना का अभाव और जवाबदेही की कमी ने विभाग की छवि को गहरा आघात पहुंचाया है। स्थानीय स्तर पर परिवहन विभाग की छवि एक ऐसे संस्थान की बनती जा रही है, जहां ‘काम’ की अपेक्षा ‘बहाने’ ज्यादा मिलते हैं।
आरटीओ कार्यालय की लापरवाही से सिर्फ आम जनता ही नहीं, बल्कि कई वाहन एजेंसियां, ड्राइविंग स्कूल और ट्रांसपोर्ट कारोबारी भी प्रभावित हो रहे हैं। नए वाहन की बिक्री में रजिस्ट्रेशन समय से न होने के कारण ग्राहकों में असंतोष है। ड्राइविंग स्कूल वाले समय से लाइसेंस न बन पाने के कारण परेशान हैं, और ट्रांसपोर्ट कारोबारी परमिट व टैक्स संबंधी कार्यों के विलंब से आर्थिक क्षति झेल रहे हैं।
सरकारी कार्यसंस्कृति में सुधार के लिए यदि अधिकारी ही दायित्व से भागने लगेंगे, तो नीचे के कर्मचारी से क्या उम्मीद की जाए? यह स्थिति प्रशासन की कार्यक्षमता और इच्छाशक्ति दोनों पर प्रश्नचिह्न लगाती है। आम जनता यह जानना चाहती है कि आखिर इस अनियमितता का जिम्मेदार कौन है? क्या विभाग के उच्च अधिकारी इस स्थिति से अनभिज्ञ हैं? अगर नहीं, तो कार्यवाही क्यों नहीं होती? और अगर जानते हुए भी चुप हैं, तो यह एक सोची-समझी अनदेखी है, जो कहीं न कहीं भ्रष्टाचार और कार्य के प्रति उदासीनता को बढ़ावा देती है।
अब आवश्यकता इस बात की है कि जिलाधिकारी महराजगंज स्वयं इस मामले में संज्ञान लें और आरटीओ कार्यालय की कार्यप्रणाली की गहन समीक्षा करें। एक ऐसा तंत्र विकसित किया जाए जिसमें जनता को न सिर्फ समयबद्ध सेवाएं मिलें, बल्कि ऑनलाइन माध्यमों के जरिए भी उन्हें सहायता मिले। वहीं परिवहन विभाग के उच्चाधिकारियों को चाहिए कि वे इस प्रकार की घटनाओं पर कड़ा रुख अपनाएं और दोषियों को चिन्हित कर आवश्यक अनुशासनात्मक कार्रवाई करें।
लोकतंत्र में सबसे महत्वपूर्ण तत्व जनता होती है, और अगर जनसेवक ही जनता की उपेक्षा करने लगें, तो यह प्रशासनिक व्यवस्था की असफलता का संकेत है। आम जन की यह पीड़ा अब सोशल मीडिया और स्थानीय मीडिया के जरिए सरकार तक पहुंच रही है। यदि इस आवाज़ को अनसुना किया गया, तो इसका परिणाम विभाग की छवि और जनता के विश्वास दोनों पर विपरीत प्रभाव डालेगा।
‘बॉर्डर न्यूज़ लाइव’ की अपील है कि परिवहन विभाग इस प्रकार की लापरवाही को समाप्त करने के लिए त्वरित और ठोस कदम उठाए।
निश्चित रूप से यह खबर न सिर्फ आम जन के दर्द को उजागर करती है, बल्कि प्रशासन को आईना दिखाने का काम भी करती है। अब देखना यह है कि महराजगंज प्रशासन और परिवहन विभाग इस सन्नाटे को तोड़ते हैं या फिर जनता की समस्याएं यूं ही अनसुनी होती रहेंगी।